________________ णउणं सो संबंधो उभयट्ठिओ सव्वलोअसुपसिद्धो / केण वि पडिसेहेडं सक्को, सक्कोवमेणावि // 8 // इयरं विणण्णहासो संबंधेणं हवंत वत्तव्वा / संबंधो वड्डिअओ कहंचि अणवट्ठिआ अण्णे // 9 // एवं कज्जं कारणनिययं ण हु कारणं विणा होइ / उप्पाविऊण कज्जं विरमइ पुण कारणं सव्वं // 10 // तत्तो अकज्जजायं कारणजायं निमित्तमाईयं / अण्णुण्णं निरविक्खं हवेइ णियमेण कयकिच्चं // 11 // कज्जं व कारणं वा अन्नट्ठा तेण कारणाईणं / सब्भावाभावाणं, कया वि न मुहं पलोएइ // 12 // जइ पुण किंचि वि कज्जं, परिणामिअकारणा पिदब्भूयं / तो तस्स य सब्भावं वंछइ णउणं असब्भावं . // 13 // जं कारणेण दिण्णं णियकज्जत्तं तु कज्जमित्तम्मि / तं तम्मि हु कज्जत्तं ववइस्सइ णागयद्धाए // 14 // एवं पुत्तपपुत्ताइयं व बुहवायगाइयं सव्वं / . उप्पत्ती समणंतरमवि भण्णइ सव्वकालम्मि // 15 // एएणं पितिपमुहे संतम्मि असंत पुत्तमाईयं / / न लहइ तप्पुत्तत्ता इय ववएसंति णिक्खित्तं // 16 // अण्णह पिया वि तस्सुअ, पियत्तणेणं ण होइ वत्तव्यो / पितिविरहेव नवच्चो पुत्तो तप्पुत्तभावेणं . // 17 // तेणं भणंति केई गुरुम्मि संतम्मि तस्स पट्टधरो / जो सुरसुहपत्तो सो न पट्टधारि त्ति तं मिच्छा // 18 // अहिसित्तो जह राया पिउणो नियमेण. होइ पट्टधरो / तहणुण्णायगणो विअ, सूरी सगुरुस्स पट्टम्मि // 19 // . . . 340