________________ जं णं सुत्तज्झयणं गुरुवसयं भद्दबाहुवयणं पि / आराहिओ गुरुजणो सुअं बहुविहं लहुं देइ // 34 // नवकररसरयणीसरमिअ 1629 वच्छरि धम्मसायरप्पभवा / धम्मुच्चारनिमित्तं सच्छियबत्तीसिआ रयणा // 35 // एवं इरिआपुव्वं जे सामइअं कुणंति सुद्धमणा / तेसिं चेव पसन्ना सिरिहीरविजयजुगपवरा // 36 // // 1 // // 2 // महामहोपाध्यायश्रीधर्मसागररचितम् ॥पर्युषणादशशतकम् // नमिउं वीरजिणंदं कालयसूरिं च सक्कपणयपयं / संपयपज्जोसवणातिहिनिअमं संपवक्खामि कारणिआ य चउत्थी कालगसूरीपवत्तिआ तित्थे / सव्वेसि सम्मया खलु लोवंतो तित्थआसाई.. णणु जुण्हपंचमीए भद्दवए वद्धमाणजिणणाहो / पज्जोसवणं कासी तं चेव य गणहरप्पमुहा . इअ सुत्तपक्खदक्खो परंपरासंगयं पि चउत्थिदिणं / परिवज्जइ सो तित्थासायणकारी कहं णु भवे ? ' इअ चे वुच्चइ पंचमिपवत्तणं चेव तित्थपडिकूलं / तं चिअ तित्थकरस्स वि जं पुज्जं तं पि तस्सावि तित्थपडिकूलचारी तित्थयराईण होइ सव्वेसि / निअमा अवण्णवाई पच्चक्खं पुण्णचक्खूणं जेण विगप्पिअ तित्थं विगप्पिआ तेण तित्थगरपमुहा / उसहाइअनामेहिं निअनिअकुविकप्पसिद्धिकरा 333 // 4 // // 5 // // 6 // // 7 //