________________ बोधरूपादयोऽप्येतत्-त्रैरूप्याभेदवर्तिनः / कथञ्चित्तेन जैनेन्द्रं, सुदृशं वस्तुलक्षणम् .. // 32 // // 32 // पू.आ.श्रीहेमचन्द्रसूस्विरजीविरचितम् . // प्रमाणमीमांसायाः // प्रथम स्याध्यायस्य प्रथममाह्निकम् / अथ प्रमाणमीमांसा // 1 // सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम् // 2 // स्वनिर्णयः सनप्यलक्षणम्, अप्रमाणेऽपि भावात् . // 3 // ग्रहीष्यमाणग्राहिण इव गृहीतग्राहिणोऽपि नाप्रामाण्यम् // 4 // अनुभयत्रोभयकोटिस्पर्शी प्रत्ययः संशयः // 5 // विशेषानुल्लेख्यनध्यवसायः // 6 // अतस्मिंस्तदेवेति विपर्ययः // 7 // प्रामाण्यनिश्चयः स्वतः परतो वा // 8 // प्रमाणं द्विधा // 9 // प्रत्यक्षं परोक्षं च . .. // 10 // व्यवस्थान्यधीनिषेधानां सिद्धेः प्रत्यक्षेतप्रमाणसिद्धिः // 11 // भावाभावात्मकत्वाद्वस्तुनो निर्विषयोऽभावः // 12 // विशदः प्रत्यक्षम् प्रमाणान्तरानपेक्षेदन्तया प्रतिभासो वा वैशद्यम् // 14 // तत् सर्वथावरणविलये चेतनस्य स्वरूपाविर्भावो मुख्यं केवलम्१५ // प्रज्ञातिशयविश्रान्त्यादिसिद्धेस्तत्सिद्धिः // 16 // बाधकाभावाच्च१७॥ तत्तारतम्येऽवधिमनःपर्यायौ च - // 18 // विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयभेदात् तद्भेदः // 19 // इन्द्रियमनोनिमित्तोऽवग्रहेहावायधारणात्मा सांव्यवहारिकम्॥ 20 // 124