________________ यथाग्न्यभावे न भवत्येव धूमो यथा जलाशये // 48 // हेतोः साध्यधर्मिण्युपसंहरणमुपनयः / // 49 // यथा धूमश्चात्र प्रदेशे // 50 // साध्यधर्मस्य पुनर्निगमनम् // 51 // यथा तस्मादग्निरत्र // 52 // एते पक्षप्रयोगादयः पञ्चापि अवयवसंज्ञया कीर्त्यन्ते // 53 // उक्तलक्षणो हेतुर्द्विप्रकारः / उपलब्ध्यनुपलब्धिभ्यां भिद्यमानत्वात् 54 उपलब्धिविधिनिषेधयोः सिद्धिनिबन्धनमनुपलब्धिश्च // 55 // विधिः सदंशः // 56 // प्रतिषेधोऽसदंशः // 57 / / स चतुर्धा प्रागभावः प्रध्वंसाभाव इतरेतराभावोऽत्यन्ताभावश्च 58 यन्निवृत्तावेव कार्यस्य समुत्पत्तिः सोऽस्य प्रागभावः // 59 // यथा मृत्पिण्डनिवृत्तावेव समुत्पद्यमानस्य घटस्य मृत्पिण्डः // 60 // यदुत्पत्तौ कार्यस्यावश्यं विपत्तिः सोऽस्य प्रध्वंसाभावः // 61 // यथा कपालकदम्बकोत्पत्तौ नियमतो विपद्यमानस्य कलशस्य / कपालकदम्बकम् // 62 // स्वरूपान्तरात् स्वरूपव्यावृत्तिरितरेतराभावः // 63 // यथा स्तम्भस्वभावात्कुम्भस्वभावव्यावृत्तिः // 64 // कालत्रयापेक्षिणी हि तादात्म्यपरिणामनिवृत्तिरत्यन्ताभावः // 65 // यथा चेतनाचेतनयोः - // 66 // उपलब्धेरपि द्वैविध्यमविरुद्धोपलब्धिविरुद्धोपलब्धिश्च // 67 // तत्राविरुद्धोपलब्धिविधिसिद्धौ षोढा // 68 // GU