________________ कम्मरयं अट्ठविहं नासेंति फुडं नयाण जीवाणं / तेण सरणं पवन्ना जिणाण पाए सिवुप्पाए // 252 // धण्णा जिणजणणीओ सिवगइपहदेसगा जिणा जाहि। उदरेणं जिणवसभा धम्मधुराधारगा धरिया" // 253 / / एवं सब्भूएहिं गुणेहिं अभिवंदिउं जिणवरिंदे। 'जयइ जिणसासणं' ति य पहरिसियमणेहिं उग्घुटुं // 254 // मोत्तूण य ते पवरे कंचणसीहासणे सुरवरिंदा / घेत्तूण जिणे सहिया सुरेहि संपत्थिया तुरियं . // 255 // संपत्ता य खणेणं जिणजम्मवणे पुरंदरा मुइया। ... नमिऊण जिणे अप्पंति विम्हिया नेगमेसीणं . // 256 // तेहि वि कंचणगोरा मयलंछणसोमदंसणा सुमणा। निक्खित्ता परमगुरू पासे जणणीणं नियगाणं // 257 // तो मरूदेवाईणं निदं अवहरिय वासवा मुइया / सह देवीहिं थुणंती जिणाण जणणीण(ओ) पियरो य // 258 / / भत्ति-बहुमाण-विणएण एवमभिवंदिए सु(स)देवीहिं / जलधरगंभीरेणं सरेण अह वासवो भणइ // 259 // "भो भो पिसाय-भूया ! सरक्खसा जक्ख-नाग-गंधव्वा ! / तुब्भे विहणह मारि सोस-ज्जरकारया चेव // 260 // सुट्ट्यरं जेसिं पुण कुसु(स्सु)इपुण्णा निरंतरं कण्णा / भावेण भण्णमाणं निसुणंतु सुराऽसुरा सव्वे // 261 // अण्णाण-पमाएणं अहवा वि य अणुस्स(स)यप(प्प)ओगेणं / मिच्छत्ताभिनिवेसेण वा वि वीसंस(?भ)ओ वा वि // 262 // जइरिच्छाए भएण व वेरेण व पुव्वभवनिबद्धेसु(?ण)। जो चिंतेज्ज जिणाणं मणसा वि विहं सुरो पावं // 263 //