________________ देवत्त माणुसत्तं तिरिक्खजोणि तहेव नरयं च / पत्तो अणंतखुत्तो पुज्विं अन्नाणदोसेणं // 162 // न य संतोसं पत्तो सएहिं कम्मेहिं दुक्खमूलहिं / न य लद्धा परिसुद्धा बुद्धी सम्मत्तसंजुत्ता // 163 // सुचिरं पि ते मणूसा भमंति संसारसायरे दुग्गे / जे हु कति पमायं दुक्खविमोक्खम्मि धम्मम्मि // 164 // दुक्खाण ते मणूसा पारं गच्छंति जे दढधिईया / पुव्वपुरिसाणुचिण्णं जिणवयणपहं न मुंचंति // 165 // मग्गंति परमसोक्खं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता / कोहं माणं मायं लोभं तह राग-दोसं च // 166 // न वि माया, न वि य पिया, न बंधवा, न वि पियाइं मित्ताइ / पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबणं किंचि // 167 / / न हिरण्ण-सुवण्णं वा दासी-दासं च जाण-जुग्गं च / पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबणं किंचि . // 168 // आसबलं हत्थिबलं जोहबलं धणुबलं रहबलं च / पुरिसस्स मरणकाले न होति आलंबणं किंचि // 169 // एवं आराहेंतो जिणोवइटुं समाहिमरणं तु / / उद्धरियभावसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो .. // 170 // जाणतेण वि जइणा वयाइयारस्स सोहणोवायं / परसक्खिंया विसोही कायव्वा भावसल्लस्स // 171 // जह सुकुसलो वि वेज्जो अन्नस्स कहेइ अप्पणो वाहि / सो से करइ: तिगिच्छं साहू वि तहा गुरुसगासे // 172 // इत्थ समप्पइ इणमो पव्वज्जा मरणकालसमयम्मि / जो हु न मुज्झइ मरणे साहू आराहओ भणिओ // 173 // . . . . 33