________________ // 403 // एवं सोऊण तु सो समणो संजातसमयपत्तट्ठो / इच्छामि त्ति उवगतो वाचकवसभस्स उवदेसं कालण्णाणसमासो पुव्वायरिएंहिं नीणिओ एसो।। दिणकरपण्णत्तीतो. सिस्सजणहिओ सुखोपायो पुव्वायरियकयाणं करणाणं जोतिसम्मि समयम्मि / पालित्तकेण इणमो रइया गाहाहिं परिवाडी // 404 // // 404 // // 405 // // 1 // // 2 // // 3 // श्री जिनभद्रक्षमाश्रमणसूत्रिता ॥विशेष-णवतिः // उस्सेहंगुलमेगं हवइ पमाणंगुलं सहस्सगुणं / उस्सेहंगुलदुगुणं वीरस्साऽऽयंगुलं भणियं / एवं चायंगुलओ कहमट्ठसयं जिणो हवइ वीरो ? / उस्सेहंगुलमाणेण किह व सयमट्ठसटुं सो? दो सोलसुत्तरसया उस्सेहंगुलपमाणओ एवं / अहवाऽऽयंगुलमाणेण होइ चुलसीइमुव्विद्धो भरहायंगुलमेगं जइ अ पमाणंगुलं तु निद्दिटुं। .. तो भरहो वीराओ पंचसयगुणो न संदेहो जोअणसहस्समहिअं वणस्सइसरीरमाणमुद्दिढ़। . तं च किर समुद्दगयं जलरुहनालं हवइ णऽण्णं उस्सेहंगुलओ तं होइ पमाणंगुलेण य समुद्दो / अवरोप्परओ दोण्णि वि कहमविरोहीणि होज्ज ण्हु ? पुढवीपरिणामाई ताई किर सिरिनिवासपउमं व। तित्थेसु पुण वणस्सइपरिमाणाई पि होज्ज णणु // 4 // // 6 // // 7 // 291