________________ // 94 // // 95 // // 96 // तदणाइसिद्धजोगो असंगओ नय अन्नबंधम्मि। अन्नो मुच्चइ जुत्तं खणभंगो ता कहं भवउ. बज्झइ पयडी नेव य मुच्चइ य जीवो अइप्पसंगाओ। निस्सेसकम्ममुक्के पुणरागमणं कुओ होइ ता नियपक्खनिरागारदसणा एइ झत्ति मुत्तो वि। / एयमसंगयमणिमित्तिमित्थ संसाररूवं जं. निययावही न हुज्जा संसारो अहेतुओ सया होउ। मुक्खो कम्माभावो सासयजीवस्सभावो उ संताणस्स न नासो फलविरहा पुव्वपुव्वविरहो वि। संताणन्तर कज्जे परलोगो भे न पाउण वत्थुसहावो एसो देहतिभागूणजीवमाणेण। ईसीपब्भाराए उप्पिं ओगाहिया सिद्धा जदणंतनेयनाणी जीवो कम्मेहिं वेढिओ न तहा। ता कम्मक्खयभावे अणन्तनाणिणो सया सिद्धा इय भावणासमेओ सम्मद्दिट्ठी न इत्थ संदेहो / इत्तु च्चिय लिंगमिणं अव्वहिचारी ससज्झेणं // 97 // // 98 // // 99 // // 100 // // 101 // पू. आ. श्रीअभयदेवसूरिविरचिता ॥पञ्चनिर्ग्रन्थी॥ पन्नवण-वेय-रागे, कप्प-चरित्त-पडिसेवणा-नाणे / तित्थे-लिंग-सरीरे-खित्ते काल-गइ-संजम-निगासे जोगु-वओग-कसाए, लेसा-परिणाम-बंधणे-वेए / कम्मोदीरण उवसंपजहण सन्ना य आहारे . // 1 // // 2 // 214