________________ // 3 // // 4 // // 5 // // 6 // // 7 // // 8 // भव-आगरिसे-कालं-तरे य-समुग्घाय खित्त फुसणा य / भावे परिमाणं खलु-अप्पांबहुयं नियंठाणं पंच नियंठा भणिया, पुलाय बउसा कुसील निग्गंथा। होइ सिणाओ य तहा, इक्किक्को सो भवे दुविहो गंथो मिच्छत्तधणाइओ मओ जे य निग्गया तत्तो / ते निग्गंथा वुत्ता, तेसि पुलाओ भवे पढमो धन्नमसारं भन्नइ पुलाय सद्देण तेण जस्स समं / चरणं सो उ पुलाओ लद्धीसेवाहिं सो य दुहा संघाइयाण कज्जे, चुनिज्जा चक्कवट्टिमवि जीए / तीए लद्धिए जुओ, लद्धिपुलाओ मुणेयव्वो आसेवणा पुलाओ, पंचविहो नाणदंसणचरित्ते / लिंगम्मि अहासुहुमे य, होइ आसेवणा निरओ नाणदंसणचरणे, ईसीसि विराहयं असारो जो। सो नाणाइ पुलाओ, भन्नइ नाणाइ जं सारो खलियाइदूसणेहिं नाणं, संकाइएहिं सम्मत्तं / ' मुलुत्तरगुणपडिसेवणाइ, चरणं विराहइ . लिंगपुलाओ अनं, निक्कारणओ करेइ जो लिंगं / मणसा अकप्पिआणं, निसेवओ होइ अहसुहुमो बउसं सबलं कब्बुरमेगटुं तमिह जस्स चारित्तं / . अइयारपंकभावा, सो बउसो होइ निग्गंथो : उवगरणसरीरेसु स दुहा दुक्हिो वि होई पंचविहो / आभोगअणाभोगे अस्संवुडसंवुडे सुहुमे जो उवकरणे बउसो, सो धुवइ अपाउसे वि वत्थाई। इच्छइ य लण्हयाई, किंचि विभूसाइ भुंजइ य // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // . 215