________________ // 82 // // 83 // // 84 // // 85 // // 86 // // 87 // पइजंतुभेय भित्रो जीवो इहरा उ सव्वजीवाणं / संसारो मुक्खो वा विरोहओ उ कह णु एगत्तं सो वि य संकोयविकाससंगओ देहवावगो नियमा। भोगाययणेण वि तस्स हंदि जोगो समो इहरा। तव्वइरित्तो धम्मा-धम्मागासाई होइ अजीवो वि। आगमविहिया धम्माधम्मागसो मुणेयव्वा जइ पुग्गला न हुज्जा आगारो किं न होइ सव्वत्था / सुविणो वि अणुहविज्जइ दिणोवलद्धो फुडं अत्था सुहपयडीओ पुण्णं असुहाओ हुंति पावरूपा उ। सुहिदुहिजणोववाओ इत्तु च्चिय जं समा भूया सुहदुहरूवो नियमेण अस्थि तह आसवो भवत्थाण / सदणुट्ठाणा पढमो पाणवहाईहिं बीओ उ पाणवहाईहिन्तो सुहासवो किं न सोयरीयाण / कह हुज्ज आगमो जीवघायसंदंसगो सुद्धो एत्तो च्चिय अस्थि फुडं सव्वन्नू विगयदोससब्भावो। कह सग्गमुक्खयोगो दाणतवो विणयमाईणं जइ हुज्ज न तव्वयणं पमाणमेयम्मि हंदि वत्थुम्मि। जुत्तीहिं तस्स साहणमणत्थयं किं न भे भवइ पावट्ठाणेहितो विरई ववहारसंवरो होइ। निच्छयणएण सेलेसिगाइं जमणंतरो मुक्खो तवसा उ निज्जरा इह हंदि पसिद्धा उ सव्ववाईणं / इहरा तवो विहाणं किरियावाईण कह जुत्तं मिच्छत्ताइनिमित्तो बंधो इहरा कहं तु संसारो। . नय लोगे वि अबद्धो मुच्चइ पयर्ड जओ हंदि . . . 213 . // 88 // // 89 // // 90 // // 91 // // 92 // // 93 //