________________ // 58 // // 59 // // 60 // // 61 // // 62 // // 63 // पुढवाइयाण जइ वि हु होइ विणासो जिणालयाहिंतो। तव्विसया वि सुदिट्ठिस्स नियमओ अस्थि अणुकंपा एयाहिंतो बुद्धा विरया रक्खंति जेण पुढवाई। इत्तो निव्वाणगया अबाहिया आभवमिमाणं रोगि सिरावेहो इव सुविज्जकिरिया व सुपउत्ता उ। परिणामसुंदर च्चिय चिट्ठा से बाहयोगे वि अन्नेसिं पवत्तीए निबन्धणं होइ विहिसमारंभो / सो सुत्ताओ नज्जइ तं चिय लहेमि ता पढमं जिणवयणामयसुइसंगमेण उवलद्ध वत्थुसब्भावं / कुस्सुइनियत्तभावा भयंति जिणधम्ममेगे उ जिणवयणं साहंती साहू जं ते वि साहणसमत्था / . वायरणछंदनाडयकव्वालंकारनिम्माया छद्दरिसणतक्कविआ कुतित्थिसिद्धतं जाणया धणियं / ता ताण कारणे सव्वमेव इह होइ लेहणीयं . पइभाइगुणजुयाण वसही सयणासणाइणा निच्चं / आहारोसहिभेसज्जवत्थमाईहिं उवठंभं काऊण पुत्थयाइं समप्पियं सासणं कुतित्थीणं / अधरिसणीयमेयं काहामि तओ य जिणधम्मे गुणरागिणो जणा खलु संबुज्जस्संति ते उ.सत्ताणं / अभयं काहिंता तओ एवं एयं च कारेमि वावीकूवतडागाइगोयरं देइ न खलु उवदेसं / जमसंखविणासेणं न होइ थेवाणमणुकंपा सव्वाणुकंपगस्स उ गुणहेऊ ता कहं अपत्तम्मि। दाणमसुद्धं गुणहेऊ बेइ अणुकंपसंजुत्तो // 64 // // 65 // // 66 // // 67 // // 68 // // 69 // 211