SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 46 // // 47 // // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // इत्तो च्चिय संलत्तं अप्पडिविरओ सुदिट्ठी जं दुक्खं / वेयइ तं न अन्नो संसारी माणसं भयइ वालोहधूलिगिहिरमणसंनिभं तस्स सव्वमाभाइ। देविन्दचक्कवट्टणाइपयमद्धयमवस्सं इय सव्वत्थ असरणं अणंतदुहभायणम्मि संसारे। अप्पाणं मन्नन्तो निच्चुव्विग्गो महादुक्खं तो जत्थ जत्थं सावज्जकज्जमब्भुज्जम समुव्वहइ। सो तत्थ तत्थ तम्मइ विरइ महन्तो अपावन्तो मन्नइ जयम्मि धन्ने सुसाहुणो चत्तभवदुहासंगे। अन्नमणाहमसरणं जयं सुदिट्ठी विचिन्तेइ सो सव्वविरइ आरा हरिसट्ठाणं अपावमाणो उ न लहइ / सव्वत्थ धिइं धणपरियणसयणगेहेसु ... इइ भावणासमेओ सम्मदिट्ठी जिणेहिं अक्खाओ। तविहचिट्ठा अवसियमणपरिणामो महासत्तो सम्मद्दिट्ठी जीवो अणुकंपपरो सया वि जीवाणं / भाविदुहविप्पओगं ताण गणंतो विचिंतेइ निययसहावेण हया तावदभव्वा ण मोइउं सक्का। भवदुक्खाओ इमे पुण भव्वा परिमोयणीया उ संसारदुक्खमोक्खणहेउं जिणधम्मं अन्तरा नान्नो, / मिच्छत्तुदयसंगयजणाणं स य परिणमिज्जइ कहं नु नायज्जियवित्तेणं कारेमि जिणालयं महारम्भ। . तइंसणाउ गुणरागिणो जंतुणो बीयलाभु त्ति . कारेमि बिंबममलं दटुं गुणरागिणो जओ बोहिं। सज्जो लभेज्ज अन्ने पूयाइसयं य दळूणं / 210 // 52 // // 53 // // 54 // // 55 // // 56 // // 57 //
SR No.004465
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy