________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // श्री पूर्वाचार्यकृता ॥पुद्गलषट्त्रिंशिका // वुच्छं अप्पाबहुअं, दव्वाखित्तद्धभावओ वा वि / अपएससप्पएसाण, पुग्गलाणं समासेणं दव्वेणं परमाणू, खित्तेणेगप्पएसमोगाढा / कालेणेगसमइआ, अपएसा पुग्गला हुंति भावेणं अप्पएसा, एगगुणा जे हवंति वण्णाई / ते च्चिय थोवा जं गुण बाहुल् पायसो दव्वे इत्तो कालाएसेण अप्पएसा भवे असंखगुणा / किं कारणं पुण भवे, भण्णइ परिणामबाहुल्ला भावेण अप्पएसा, जे ते कालेण हुंति दुविहा वि / दुगुणादओ वि एवं, भावेणं जावणंतगुणा / कालापएसयाणं, एवं इक्किक्कओ हवइ रासी। इक्किक्के गुणठाणम्मि एगगुणकालयाईसु आहाणंतगुणत्तणमेवं कालापएसयाणंति / ' जमणंतगुणट्ठाणेसु हुंति रासी वि हु अणंता भण्णइ एगगुणाण वि, अणंतभागम्मि जं अणंतगुणा / तेणासंखगुण च्चिय, हवंति नाणंतर्गुणिअत्तं एवं ता भावमिणं, पडुच्च कालापएसया सिद्धा।.. परमाणुपोग्गलाइसु, दव्वे वि हु एस चेव गमो एमेव होइ खित्ते, एगपएसावगाहणाईसु / ठाणंतरसंकति, पडुच्च कालेण मग्गणया संकोअविकोअंपिहु, पडुच्च ओगाहणाइ एमेव / तह सुहुमबायरथिरेयरे य सद्दाइपरिणाम . 203 // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 //