________________ जह जह दोसोवरमो, जह जह विसएसु होइवेरग्गं / तह नायव्वं तं खलु आसन्नं में पदं परमं // 1203 // दुग्ग(ग्गे) भवकंतारे भममाणेहि सुइरं पणटेहिं / दुलभो जिणोवइट्ठो सोगइमग्गो इमो लद्धो / - // 1204 // इणमो सुगतिगतिपहो सुदेसिओ उज्जुओ जिणवरेहिं / ते धन्ना जे एयं पहमणवज्जस्स मोतिण्णा // 1205 // जाहे य पावियव्वं इह परलोगे य होइ कल्लाणं / ताहे जिणवरभणियं पडिवज्जइ भावतो धम्मं // 1206 // खंती य मद्दवऽज्जव मुत्ती तव संजमे य बोधव्वे / सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो // 1207 // जो समो सव्वभूतेसु तसेसु थावरेसु.य। धम्मो दसविहो तस्स इति केवलिभासितं // 1208 // जो दसविहं पि धम्मं सद्दहती सत्ततत्तसंजुत्तं / सो होइ सम्मदिट्ठी संकादिदोसरहितो य . // 1209 // सम्मइंसणमूलं दुविहं धम्मं [? च सो] समासत्तो / जेटुं च समणधम्मं, सावगधम्मं च अणुजेटुं // 1210 // जा जिणवरदिट्ठाणं भावाणं सद्दहणया सम्मं (?) / अत्तणओ बुद्धीय य सोऊण य बुद्धिमंताणं // 1211 // मिच्छाविगप्पिएसु य अत्थेसु कुसासणोवइढेसु / 'एतं एव'मिति रुई सुद्धं तं होइ सम्मत्तं // 1212 // एगंतो मिच्छत्तं, जिणाण आणा य होइ णेगंतो। . एगं पि असदहओ मिच्छद्दिट्ठी जमालि व्व // 1213 // जिणसासणभत्तिगतो वरतरमिह सीलविप्पहूणो वि। न य नियमपरो वि जणो जिणसासणबाहिरमतीओ // 1214 / / 158