________________ मिच्छत्तमोहियाणं सद्धम्मपरम्मुहाण जीवाणं / सियवायबाहिराणं तह कुस्सुइपुण्णकण्णाणं // 1191 // परपरिवायरयाणं कुल-गण-संघस्सऽनिव्वुइरताणं / चारित्तदुब्बलाणं मा हु कहिज्जा हु जीवाणं * // 1192 // जाणं चड्डाणं निविण्णाणेण निव्विसेसाणं / संसारसूयराणं कहियं पि निरत्थयं होइ // 1193 // एयस्सिं पडिवक्खो जे जीवा पयइभद्दग विणीया। पगईए मउयचित्ता तेसिं तु पुणो कहिज्जा हि // 1194 // सोऊण महत्थमिणं निस्संदं मोक्खमग्गसुत्तस्स। .............. यत्ता मिच्छत्तपरम्मुहा होह / // 1195 // लखूण य सम्मत्तं नाणं च चरित्तमुत्तमं तुब्भे। पुव्वपुरिसाणुचिण्णं मग्गं निव्वाणगमणस्स . // 1196 // तह तह करेह सिग्घं जह जह मुच्चह कसायजालेण। . किसलयदलग्गसंठियजललव इव चंचलं जीयं . // 1197 // धण्णाणं खु कसाया जगडिज्जंता वि अन्नमन्नेहि। नेच्छंति समुढेउं सुविणिट्ठी पंगुलो चेव // 1198 // उवसामपुव्वणीया (?) गुणमहिया जिणचरित्तसरिसं पि। पडियाएंति कसाया, किं पुण सेसे सरागत्थे ? . // 1199 / / सामण्णमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होति / मन्त्रामि उच्छुपुष्पं व निष्फलं तस्स सामइयं // 1200 // जं अज्जियं चरितं देसूणाए (वि) पुव्वकोडीए / तं पि कसाइयमित्तो नासेइ नरो मुहुत्तेणं // 1201 // उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। . मायं चऽज्जवभावेण, लोभं संतुट्ठिए जिणे // 1202 // 157