________________ // 786 // // 787 // // 788 // // 789 // // 790 // // 791 // अह भणति नंदराया 'केण समं दाई तुज्झ सामत्थं ? / को अण्णो वरतरतो निम्मातो सव्वसत्थेसु ?' कंबलरयणेण ततो अप्पाणं सुट्ठ संवरित्ताणं / अंसूणि निण्हुयंतो असोगवणियं अह पविट्ठो जत्तियमेत्तं दिण्णं जत्तियमेत्तं इमं मि भुत्तं ति / एत्तो नवरि पडामो झसो व्व मीणाउलघरम्मि आणा रज्जं भोगा रण्णो पासम्मि आसणं पढमं / सुव्वत्त इमं न खमं, खमं तु अप्पक्खमं काउं केसे परिचितंतो रायकुलाओ य जे परिकिलेसे। नरएसु य जे केसे तो लुंचति अप्पणो केसे तं चिय परिहियवत्थं छेत्तूणं कुणइ अग्गतो आरं / कंबलरयणोगुंठिं काउं रण्णो ठिओ पुरतो . 'एयं मे सामत्थं भणाइ अवणेहि(इ) मत्थतोगुंठि' / तो णं केसविहूणं केसेहि विणा पलोएति अह भणइ नंदराया 'लाभो ते धीर ! नित्थराहि य णं'। 'बाढं' ति भाणिऊणं अह सो संपत्थितो तत्तो अह भणति नंदराया 'वच्चइ गणियाघरं जइ कहंचि / तो णं असच्चवादी तीसे पुरतो विवाएमि' सो कुलघरसामिद्धि गणियाघरसंतियं च सामिद्धि, पाएण पणोल्लेउं नीती नगरा अणवयक्खो जो एवं पव्यइओ एवं सज्झाय-झाणउज्जुत्तो। गारवकरणेण हिओ सीलभरूव्वहणधोरेयो जह जह एही कालो तह तह अप्पावराहसंरद्धा। अणगारा पडिणीते निसंसयं उवद्द(?उद्द)वेहिति // 792 // // 793 // // 794 // // 795 // // 796 // // 797 // 123