________________ // 774 // // 775 // // 776 // // 777 // // 778 // // 779 // रागेण व दोसेण व जं च पमाएण किंचि अवरद्धं . तं भे सउत्तरगुणं अपुणकारं खमावेति" ... अह सुरकरिकरउवमाणबाहुणा भद्दबाहुणा भणियं / . "मा गच्छह निब्बंध, कारणमेगं निसामेह रायकुलसरिसभूते सगडालकुलम्मि एस संभूतो। डहराओ चेव पुणो निम्मांतो सव्वसत्थेसु कोसानामं गणियां समिद्धकोसा य विउलकोसा य / जीए घरे उवरद्धो रतिसंवेसंवि(?सम्मि) वे(?दे)सम्मि बारसवासपउत्थो कोसाए घरम्मि सिरिघरसमम्मि। सोऊण य पिउमरणं रण्णो वयणेण निग्गच्छी तेगिच्छिसरिसवण्णं कोसं आपुच्छए तयं धणियं / 'खिप्पं खु एह सामिय ! अहयं न हु वायरा सेयं(?)' भवणोरोहविमुक्को छज्जइ चंदो व सोमगंभीरो / परिमलसिरिं वहंतो जोण्हानिवहं ससी चेव भवणाओ निग्गओ सो सारंगे परियणेण कड्डितो। मत्तवरवारणगओ इ(?)ह पत्तो राउलदारं अंतेउरं अइगतो विणीयविणओ परित्तसंसारो / काऊण य जयसद्दो रण्णो पुरतो ठिओ आसि अह भणइ नंदराया 'मंतिपयं गिण्ह थूलभद्द ! महं / पडिवज्जसु तेवट्ठाइं तिण्णि नगराऽऽगरसयाई रायकुलसरिसभूए सगडालकुलम्मि तं सि संभूओ। सत्थेसु य निम्मातो गिण्हसु पिउसंतियं एयं' अह भणइ थूलभद्दो गणियापरिमलसमप्पियसरीरो / 'सामी ! कयसामत्थो पुणो [वि] भे विण्णवेसामि' // 780 // // 781 // // 782 // // 783 // // 784 // // 785 // 122