________________ पडिएण वि कुंभेणं किणं तया य तहिं न हुति(?)। पण्णासं वासाइं होही य समुब्भको कालो(?) . // 678 / / पुणरवि य कुपासंडे मेल्लावेहिति बला सलिंगाई। अइतिव्वलोहघत्थो समणे वि अभिद्दवेसी य .. // 679 // तइया वि कप्प-ववहारधारओ संजतो तवाउत्तो। आणादिट्ठी समणो भावियसुत्तो पसंस(त)मणो . . // 680 / / वीरेण समाइट्ठो तित्थोगालीए जुगपहाणो त्ति / सासणउण्णतिजणणो आयरितो होहिती धीरो // .381 // पाडिवतो नामेणं अणगारो ते य सुविहिया समणा। . दुक्खपरिमोयणट्ठा छट्ठऽ?मत[वे] वि काहिति // 682 // रोसेण मिसिमि[संतो] सो कइवाहं तहेव अच्छी य / अह नगरदेवयाओ अप्पणिया वित्तिवेसिया(बेंति 'हे राय!)॥ 683 // किं तूरसि मरिउं जे निसंस ! किं बाहसे समणसंघं ? सव्वं ते पज्जत्तं नणु कइवाहं पडिच्छामि'. तासि पि य असुणेतो छटुं भिक्खस्स मग्गए भागं / काउस्सग्गं च ठिया सक्कस्साराहणट्ठाए // 685 // गोवाडम्मि निरुद्धा समणा रोसेण मिसिमिसायंता / अंबा जक्खो य भणति 'राय ! म बाहेहि संघ' ति // 686 // काउस्सग्गठिएसुं सक्कस्साकंपियं तओ ठाणं / आहोहि(इ)य ओहीए सिग्घं तियसाहिवो एइ // 687 // सो दाहिणलोगपती धम्माणुमती अहम्मदुट्ठमती। . जिणवयणपडि(डी)कुटुं नासेहिति खिप्पमेव तयं छासीतीओ समाओ उग्गो उग्गाउ(ए) दंडनीतीए / भोत्तुं गच्छति निहणं नेव्वाण सहस्स दो पुने . // 689 // 114 // 684 // // 688 //