________________ वोच्छंति य मयहरगा 'अम्हं दायव्वयं न किंचित्थ। जं नाम तुब्भ लुब्भा करेहि तं दायसी राय !'. // 654 / / रोसेण सूसयंतो सो कइवि दिणे तहेव अच्छीही। ... अह नगरदेवया तं अप्पणिया भण्णिही "रायं! . // 655 // किं तूरसि मरिउं जे निसंस ! किं बाहसे समणसंघं। सव्वं ते पज्जत्तं नणु कइवाहं पडिच्छामि" // 656 // उल्लपडसाडओ सो पडिओ पाएहिं समणसंघस्स / 'कोवो दिट्ठो भयवं! कुणह पसायं पसाएमि' // 657 // 'किं अम्ह पसाएणं' ?, तह वि य बहुया तहिं न इच्छंति / घोरनिरंतरवासं अह वासं दाइं वासिहिति . // 658 // दिव्वंतरिक्ख-भोमा तइया होहिंति नगरनासा य। . उप्पाया उ महल्ला सुसमण-समणीण पीडकरा . // 659 // 'संवच्छरपारणए होही असिवं' ति तो तओ निति / सुत्तत्थं कुव्वंता अइसयमादीहिं नाऊणं // 660 // गंतुं पि न चाएंति केई उवगरणवसहिपडिबद्धा। केई सावगनिस्सा, केई पुण जंभविस्सा उ // 661 // तं दाणि समणुबद्धं सतरसरातिदियाहिं वासिहिति / गंगा-सोणापसरो उव्वत्तइ तेण वेगेणं // 662 // गंगाए वेगेण य सोणस्स य दुद्धरेण सोतेणं / अह सव्वतो समंता वुब्भीही पुरवरं रम्म // 663 // आलोइयनियसल्ला पच्चक्खाणेसु निच्चमुज्जुत्ता। . उच्छिप्पिहिति साहू गंगाए अग्गवेगेणं // 664 // केइत्थ साहुवग्गा उवगरणे धणियरागपडिबंद्धा। .. कलुणाई पलोएंता वसहीसहिया उ वुझंति . // 665 // 112