________________ // 60 // // 61 // // 62 // // 63 // // 64 // / / 65 // लल्लि करेविणु पल्लिकरि, सीसं खल्लीकरेहि। विल्लीदुहेविणु अत्थिकरि विणु पुन्निहि न लहेहिं मंगलमुहलो लोओ दष्टुं सोउं पि मंगलं महइ / ईहेइ मंगलाई कुणइ पुण अमंगलं सयलं अंचणरहियं दुद्धं नहु जम्मइ भूरिमंगलेहि पि / तह हयधम्मे न सुहं धम्मे पुण मंगलं सउणो लिहियं लब्भइ लोइ, काहुं देहिं ऊरियइ / अप्पसमाणा जोइ, जइ पुणु काई धीरियइ परभवि जिन किय धम्मुला, तह एत्तिउ एउ जोइ / हिवहिं पुत्ता ! चग्गियइ, मन रोवइ तुहं रोइ मन्नइ न चेव चोरो चोरियवत्थूणि पुच्छिओ संतो। जाव न जज्जरियंगो विहिओ घोरेहिं घाएहिं धम्मुज्जमं न काउं मन्नइ साहूहिं चोइओ एत्थ। . जाव न नरयं पत्तो विहलं पुण तत्थ मन्तयणं . खइरहलट्टि न फरहरइ जणुहं उप्परि जाव। खरिहिं पियारिहिं जोइ पउ, किं वेयहि ताव कर जोडिवि अब्भत्थिया, संघह यह हियकार / कन्निं चहुट्टिय चोयणहु, महु दिज्जउहु सइ वार तुहु वि न चेयहिं रे कहग, जइ पुच्छहि परमत्थु। एउ सउ सव्वह नीरिय, चरहु जु रुच्चइ वत्थु / इय संसारह दाविउं, दीसइ निच्चु वस्तु / परजिउ कोइ न उब्वियइ, तउ पुणु जणइ महंतु निच्चु विहाणइ मूढ ! जिय, मई तुह दिनिय सिक्ख / अप्पं परु वि न रंजियं, इंवई सेवियदिक्ख 273 // 67 // // 68 // // 69 // // 70 // // 71 //