________________ // 19 // // 20 // ता तह करेसु संपइ मोत्तूणं मोहणिज्जमचिरेणं। जह संसारसमुब्भवदुक्खाण जलंजलि देसि रयणायरम्मि पत्ते जह पुत्रो को वि लेइ रयणाई। तह गिण्ह तुमं लद्धयमाणुस्सो भावरयणं पि जइ कुणसि पुण पमायं जाणंतो वि हु जिणिंदधम्मम्मि / ता नूणमयाणुय ! करण्याई सोक्खाइं हारिहिसि इयचिंतामयसंसिच्चमाणमणनंदणाण जीवाण / अचिरेण सग्गसिवसुहफलाई सिझंति विउलाई मुणिचंदसूरिंगणहरविणेयसिरिदेवसूरिवयणाई। .. मोहंधयाण जंतूण होति विमलाइं नयणाई // 21 // // 22 // // 23 // // 1 // - पू.आ.श्रीदेवसूरिविरचितम् . // जीवानुशासनम् // निम्महियरायरोसं वीरं नमिऊण भुवणतियबंधुं। . मज्झत्थभावणाए जीवस्सणुसासणं वोच्छं गंभीरसिद्धसिद्धंतसिंधुसंपत्तपरमपाराणं / / सयलजणसम्मयाणं पवयणवच्छल्लजुत्ताणं कुग्गहविवज्जियाणं अणिदणिज्जाणं परिणयवयाणं / देसाइजाणयाणं अणुद्धयाणं गुणड्डाणं संवेगभावियाणं अणुओगपराण परहियरयाणं / उस्सग्गववायाणं विसयविभागम्मि दक्खाणं एवंविहसूरीणं वयणेसुं देसु माणसं णिच्च / जइ भवसंसरणाओ निविण्णो रे तुम जीव ' 240 // 3 //