________________ // 24 // - // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // वसा-रुधिर-मांसाऽस्थि-यकृद्-विण्मूत्रपूरिते। . वपुष्यशुचिनिलये मूच्र्छा कुर्वीत कः सुधी: ? अवक्रयात्तवेश्मेव मोक्तव्यमचिरादपि / लालितं पालितं वाऽपि विनश्वरमिदं वपुः धीरेण कातरेणापि मर्त्तव्यं खलु देहिना / / यन्नियेत तथा धीमान्, न म्रियेत यथा पुनः अर्हन्तो मम शरणं, शरणं सिद्ध-साधवः / उदीरितः केवलिभिर्धर्मः शरणमुच्चकैः जिनधर्मो मम माता, गुरुस्तातोऽथ सोदराः / साधवः साधर्मिकाश्च बन्धवोऽन्यत् तु जालवत् ऋषभादींस्तीर्थकरान् नमस्याम्यखिलानपि / भरतैरावत-विदेहार्हतोऽपि नमाम्यहम् तीर्थकृद्भ्यो नमस्कारो देहभाजां भवच्छिदे / भवति क्रियमाणः सन् बोधिलाभाय चोच्चकैः सिद्धेभ्यश्च नमस्कारं भगवद्भ्यः करोम्यहम् / कर्मेन्धोऽदाहि यैानाग्निना भवसहस्रजम् आचार्येभ्यः पञ्चविधाऽऽचारेभ्यश्च नमो नमः / यैर्धार्यते प्रवचनं भवच्छेदे सदोद्यतैः श्रुतं बिभ्रति ये सर्वं शिष्येभ्यो व्याहरन्ति च / नमस्तेभ्यो महात्मभ्य उपाध्यायेभ्य उच्चकैः शीलव्रतसनाथेभ्यः साधुभ्यश्च नमो नमः / भवलक्षसन्निबद्धं पापं निर्नाशयन्ति ये। सावधं योगमुपधि बाह्यमाभ्यन्तरं तथा। यावज्जीवं त्रिविधेन त्रिविधं व्युत्सृजाम्यहम् 228 // 30 // // 31 // // 32 // // 34 // // 35 //