________________ समसत्तु-मित्तभावो विसहेज्जसु वेयणं इमं जेण / एसो सो कसवट्टो वट्टइ गुरुवयणकरणम्मि // 64 // जइ वेयणासमूहे वटुंतों विसहिऊण तं सम्मं / आराहणापड्रागं हरसि तओ होसि तं सूरो // 65 // इय बहुविहविग्घाणं मज्झम्मि ठिओ रणम्मि सुहडो व्व।। गिण्हेहि जयपडागं आराहेंतो जिणिदपहुं 66 // इय किं बहुणा ? सुपुरिस ! जह रंजसि माणसाइं पाणीणं / तह आराहेहि तुमं मा होहिसि कायरो किंचि // 67 // चेइयपूयाईयं भावेणं कुणसु, तह य आहारं / वोसिर चउव्विहं पि हु तिविहं तिविहेण धीर ! तुम // 68 // पावेसि जेण सग्गे इंदत्तं, आगमे जओ भणियं / . पावइ सुहभावगओ अणसणमरणेण इंदत्तं // 69 // भावेहि भावणाओ अणिच्चयाईओ तह य बारस वि / वित्थरणवकारं पि य सुणेह भावेह चित्तेण . // 70 // अह वित्थरं न सक्कसि, तो संखेवेण जिणणवक्कारं / 'असिआउसा नमो' त्ति य भावेहि इमं पयत्तेणं // 71 // अह न वि इमं पि सक्कसि तो मह हुंकारयं करिज्जासि / जेण अहमेव तुझं देमि इमं पंचनवकारं . // 72 // इय सुलसेणं भणिओ सड्ढो जिणसेहरो महासत्तो / दुगुणाणियसंवेगो एवं भणिउं समाढत्तो // 73 // सावय ! मह पुण्णेहिं पुव्वकएहिं तुम इहं पत्तो / एयावत्थगयस्स वि जं मह आराहणा एसा // 74 // 225