________________ // 321 // // 322 // // 323 // // 324 / / // 325 // // 326 // झोसेइ णपुंसत्तं इत्थीवेयं च अन्नसमएणं / हासाइछक्कमन्नं समएणं णिदहे वीरो नियजीववीरिएणं खग्गेण व कयलिखंभसमसारं / पच्छा णिययं वेयं खवेइ लेसाहिं सुझंतो कोहाई संजलणे एक्ककं सो खवेइ लोभंतं / पच्छा करेइ खंडे असंखमेत्ते उ लोभस्स एकेक खवयंतो पावइ जा अंतिम तयं खंडं / भेतूण करेइ तओ अणंतखंडेहिं किट्टीओ तं वेयंतो भन्नइ महामुणी सुहुमसंपराओ त्ति / अहखायं पुण पावइ चारित्तं तं पि लंघेउं पंचक्खरउग्गिरणं कालं जा वीसमित्तु सो धीरो। दोहिं समएहिं पावइ केवलणाणं महासत्तो पयलं निदं पढम पंचविहं दंसणं चउवियप्पं / पंचविहमंतरायं खवइत्ता केवली होइ आउयकम्मं च पुणो खवेइ गोत्तेण सह य नामेण / सेसं पि वेयणीयं जोगनिरोहेण सो मुक्को अह पुव्वपओएणं बंधणखुडियत्तणेण उड्ढगई / लाउय एरंडफले अग्गी धूमे य दिटुंता . ईसीपभाराए पुहईए उवरि होइ लोयंतो / . गंतूण तत्थ पंच वि तणुरहिया सासया जाया नाणमणंतं ताणं दंसण-चारित्त-वीरियसणाहं / सुहमा निरंजणा ते अक्खयसोक्खा परमसिद्धा अच्छेज्जा अब्भेज्जा अव्वत्ता अक्खरा निरालंबा / परमप्पाणो सिद्धा अणायसिद्धा य ते सव्वे 211 // 327 // // 328 // // 329 // // 330 // // 331 // // 332 //