________________ खाइगसंमत्तं पुण, तुरिआइगुणट्ठगे सुए भणियं / खीणे खाइगसम्मं, खाइगचरणं च जिणकहिअं.. // 24 // दाणाईलद्धिपणगं, केवलजुअलं समत्त तह चरणं / खाइगभेआ एए, सजोगिचरमे य गुणठाणे : // 25 // जीवत्तमभव्वत्तं, भव्वत्तं आइमे अ गुणठाणे। ... सासणा जा खीणंतं, अभव्ववज्जा य दो भेया - // 26 // चरमे दुअगुणठाणे भव्वत्तं वज्जिऊण जीवत्तं / एए पंच वि भावा, परूविआ सव्वगुणठाणे // 27 // चउतीसा बत्तीसा, तित्तीसा तह य होइ पणतीसा / चउतीसा तित्तीसा, तीसा सगवीस अडवीसा // 28 // बावीस वीस एगुण-वीस तेरस य बारस कमेण / एए अ सन्निवाइअ, भेया सव्वे य गुणठाणे // 29 // . सिरि आणंदविमलसूरि, सुसिस्सेण विजयविमलेण / लिहियं पगरणमेयं रम्माओ पुव्वगंथाओ // 30 // // 1 // श्री वानरविजयविरचिता // विचारपञ्चाशिका // वीरपयकयं नमिउं, देवासुरनरबिरेफसेविअयं / जिणसमयसमुद्दाओ, विचारपंचासियं वुच्छं ओरालिय वेउब्विय, आहारग तेअ कम्मुणं भणियं / एयाण सरीराणं, नवहा भेयं भणिस्सामि बायरपुग्गलबद्धं, ओरालिय उदारमागमे भणियं / सुहुमसुहुमेण तत्तो, पुग्गलबंधेण भणियाणि ओरालिए अनंता, तत्तो दोसुं असंखगुणियाओ। तत्तो दोसु अणंता, पएससंखा सुए भणिया . 82 // 2 // // 4 //