________________ // 72 // // 73 // पञ्चमं स्थानकम् गुरुसुस्सूसा तिविहा, सेवासंपाडणेण भावे य / इहलोय गुरू पियरो, सुस्सूसणं कुणइ ताणं आहार-वत्थ-सयणा-इएसु उज्जमइ इच्छियतरेसु / भावे उ ताणमणुकूल-मायरे दाणमाईसु अहवा वि गुरू सम्मत्त-दायगा ताण होइ सुस्सूसा / इंताणभिमुहगमणं, उट्ठाणं उट्ठिएसु च विस्सामणाइ सम्मं,-ठियाणऽणुव्वयणमेव जंताणं / संपाडणमेयाणं, समिच्छियाणं विसुद्धाणं भावाणुवत्तणं तह, सव्वपयत्तेण ताण कायव्वं / सम्मत्तदायगाणं, दुप्पंडियारं जओ भणियं सम्मत्तदायगाणं दु-प्पडियारं भवेसु बहुएसु / सव्वगुणमेलियाहिं वि, उवयारसहस्सकोडीहिं // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // // 78 // षष्ठं स्थानकम् पवयणकोसलं पुण, छब्भेयं तं समासओ भणियं / सुत्ते जिणिदभणिए, कोसल्लं ताव पढमं तु जाणइ जिणिंदभणियं, एयं पुव्वावरेण अविरोहा / 'एयं पुव्वावरबाहियं तु जिणभासियं तं नो ' परवयणं वा एयं, जमित्थमासंकियं न ठिय पक्खो। जम्हा अयमहिगारो, एस तहा निग्गहो जम्हा अत्थे य कोसल्लं, पुण अणुवउत्ताइभासियमिणं तु / एयं उवउत्तेण, ठिएण भणियं वियाणाहि // 79 // // 80 // // 81 //