________________ अदुराराहत्तं पुण, छटुं अंगं तु सीलवत्तम्मि / परियणसयणमहायण, अणुकूल तिहिं पि करणेहिं // 50 // // 51 // तृतीय स्थानकम् गुणवत्तं पंचविहं, सुत्तरुई चेव तह य अत्थरुई / अणभिनिवेसी य तहा, करणरुई अणिट्ठिउच्छाहो सुत्तं जिणिदसमए, जं जं रुच्चइ तदेव एयस्स / पुणरुत्तं पुच्छाए, अत्थं निस्संकियं कुणइ अणभिनिवेसी एसो, पन्नविओ मुयइ कुग्गरं झत्ति / आसेवेइ अभिक्खं, सुत्तुतं तेण करणरुई कायव्वेसु सुहेसुं, अणिट्ठिओ होइ तस्स उच्छाहो / एयं से गुणवत्तं, रिउववहरणं पुणो यस्स // 52 // // 53 // // 54 // // 55 // // 56 // चतुर्थं स्थानकम् वायाए किरियाए, अविसंवाओ उवायफलविसए / एयं चउव्विहं पि हु, समासओ कित्तइस्सामि वायाअविसंवाओ, धम्मे सुविणिच्छियं असंदिद्धं / सुपरिप्फुड जहगहियं, वियागरितस्स नायव्वो ववहारे वि तह च्चिय, जह गहियं तं तहा, भणंतस्स / जह वा लब्भइ लोए, तहा भणंतस्स नायव्वो विज्जस्स वि वाहिनियाण-किरियट्ठिइमवितहं भणंतस्स / रण्णो वि हु अवराहं, जहाफुडं वागरिंतस्स किरियाअविसंवाओ, धम्मे जह पन्नवेइ तह कुणइ / गिहिणो किरियं इयरं, जईसु संदसणाहितो .... . . 75 // 57 // // 58 // // 59 //