________________ // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // रागो दोसो मोहो, तिन्नि वि संसारकारणं एए। रागंधा जमणत्थं, लहंति न तरामि तं भणिउं. हीलिंति धम्मिवग्गं, मग्गं निदिति बिति उम्मग्गं / चाडूणि इत्थिवग्गे, करिति पाएसु निवडता सव्वे वि हु जइ जीवा, मेहुणसन्नाय हंदि वटुंति / साहारणम्मि चरिए, कह देवो होइ अब्भहिओ जइ सो वि समाणगुणो, लोगेणं तस्स तारगो कह णु / तम्हा रागविमुक्को, देवो पडिवज्जियव्वो त्ति दोसो वि मच्छरित्तं, परगुणउवघायकारिया बुद्धी। परउवघायपरो वा, अज्झवसाउ त्ति दोसो उ दोसेणं जमणत्थं, जीवो पावेइ गरहणाईयं / को तं वन्नेउमलं, जीवन्तो वासकोडि पि पिइमाइभइणिभज्जं, दोसेणं हणइ पुत्तमवि निद्धं / परलोयाणमकंडे, कुविओ तं नत्थि जं न करे पच्छा लोएणं सो, उब्बज्झइ हम्मई .य सूलाए / पोइज्जइ तिक्खाए, छिज्जइ असिघायमाईहिं रागविसयादभिन्ने, दोसो तव्विसयगोयराणन्ने / रागो तम्हा दुन्नि वि, अन्नोन्नग्रया इमे लोए इह लोए निंदखिसं, लहंति परलोए नरयदुक्खाई / रागद्दोंसेहितो, तेसु ठिओ कह णु देवो तिं मोहो पुण अन्नाणं, सयलाणत्थाण कारणं तं तु / रागद्दोसा वि फुडं, तप्पभवा निच्छओ एस अन्नाणंधा जीवा, पाणिवहाईसु जं पयर्टेति / तत्थ य असुहं कम्म, तत्तो नरयम्मि दुक्खाई // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // 71