________________ आयुषः क्षीणभावत्वात् सिद्धानामक्षया स्थितिः / / नामगोत्रक्षयादेवामूर्तानन्तावगाहना // 132 // यत्सौख्यं चक्रिशकादिपदवीभोगसम्पदः / ततोऽनन्तगुणं तेषां सिद्धावक्लेशमव्ययम् // 133 // यदाराध्यं च यत्साध्यं यद्ध्येयं यच्च दुर्लभम् / चिदानन्दमयं तत्तैः संप्राप्तं परमं पदम् // 134 // नात्यन्ताभावरूपा न च जडिममयी व्योमवद्व्यापिनी नो / न व्यावृत्तिं दधाना विषयसुखघना नेष्यते सर्वविद्भिः सद्रूपात्मप्रसादाद् दृगवगमगुणौघेन संसारसारा / . . नि:सीमाऽत्यक्षसौख्योदयवसतिरनिष्पातिनी मुक्तिरुक्ता // 135 // इत्युद्धृतो गुणस्थान - रत्नराशिः श्रुतार्णवात् / पूर्वर्षिसूक्तिनावैव रत्नशेखरसूरिभिः / // 136 // वसतिमार्गप्रकाशकश्रीमज्जिनेश्वरसूरिविरचितम् // षट्स्थानकम् // प्रथमं स्थानम् कयवयकम्मयभावो, सीलत्तं चेव तह य गुणवत्तं / रिउमइववहरणं चिय, गुरुसुस्सूसा य बोद्धव्वा पवयणकोसल्लं पुण, छटुं ठाणं तु होइ नायव्वं / छट्ठाणगुणेहिं जुओ, उक्कोसो सावओ होइ कयवयपरिकम्मत्तं, चउव्विहं सुणइ ताव पढमं तु / . गुरुणो गीयत्थाओ, विणएण अणुग्गहपरो य को देवो को धम्मो, को व तयाराहणे उवाउ त्ति / . गीयत्थपायमूले, सुणेइ विगहाइपरिमुक्को // 3 // // 4 // 70