________________ पू.आ.श्रीधर्मघोषसूरिविरचितम् // समवसरणप्रकरणम् // थुणिमो केवलिवत्थं, वरविज्जाणंदधम्मकित्तिऽत्थं / देविंदनयपयत्थं, तित्थयरं समवसरणत्थं पयडियसमत्थभावो, केवलिभावो जिणाण जत्थ भवे / सोहंति सव्वओ तहिं, महिमाजोयणमनिलकुमरा // 2 // वरिसंति मेहकुमरा, सुरहिजलं उउसुरा कुसुमपसरं / विरयंति वणा मणिकणग - रयणचित्तं महिअलं तो // 3 // अभिंतर -मज्झ-बहि, तिवप्प मणि-रयण - कणयकविसीसा / रयण - ज्जुण - रुप्पमया, वेमाणिअ - जोइ - भवणकया॥ 4 // वट्टम्मि दुतीसंगुल, तितीसधणु पिहुला पणसयधणुच्चा / छद्धणुसयइगकोसं - तरा य रयणमयचउदारा चउरंसे इगधणुसय - पिहु वप्पा सड्ढकोसअंतरिआ / पढमबिआ बिअतइआ, कोसंतर पुव्वमिव सेसं सोवाण सहस दस कर - पिहुच्च गंतुं भुवो पढमवप्पो / तो पन्ना धणु पयरो, तओ अ सोवाण पण सहसा तो विय वप्पो पन्ना - धणु पयर सोवाण सहस पण तत्तो / तइओ वप्पो छस्सय - धणु इगकोसेहिं तो पीढं // 8 // चउदार तिसोवाणं, मज्झे मणिपीढयं जिणतणुच्चं / दो धणुसय पिहु दीहं, सडदुकोसेहिं धरणिअला जिणतणुबारगुणुच्चो, समहिअजोअणपिहू असोगतरू / तयहो य देवच्छंदो, चउ सीहासण सपयपीढा // 10 // तदुवरि चउ छत्ततिआ पडिरूवतिगं तहट्ठचमरधरा / पुरओ कणयकुसेसय - ट्ठिअ फालिअधम्मचक्कचऊ 29