________________ गुणसेढिपएसग्गं थोवं उवसामियं असंखगुणं / / एवं निहयनिकाइय अहापवत्तेण संकंतं // 836 // ठितिबंध उदीरण तिविहसंकमे होंतिऽसंखगुण कमसो / अज्झवसाया एवं उवसामणमाइएसु कमा // 837 // मूलुत्तरपगईणं साइअणाईपरूवणाणुगयं / भणियं बंधविहाणं अहुणा संवेहगें भणिमो // 838 // आउम्मि अट्ठ मोहेऽ? सत्त एकं च छाइ वा तइए / बझंतयम्मि बझंति सेसएसु छ सत्तट्ठ / / 839 // मोहस्सुदये अट्ठ वि सत्त य लब्भंति सेसयाणुदए / संतोइण्णाणि अघाइयाणं अड सत्त चउरो य // 840 // बंधइ छ सत्त अट्ठ य मोहुदए सेसयाण एकं च / पत्तेयं संतेहिं बंधइ एग छ सत्त? ' // 841 // सत्तट्ठछबंधेसुं उदओ अट्ठण्ह होइ पयडीणं / सत्तण्ह चउण्हं वा उदओ सायस्स बंधम्मि . // 842 // दो संतट्ठाणाइं बंधे उदए य ठाणयं एक्कं / - वेयणियाउयगोए एगं नाणंतराएसुं // 843 // नाणंतरायबंधो आसुहमं उदयसंतया खीणं / / आइमदुगचउसत्तमनारयतिरिमणुसुराऊणं // 844 // नारयसुराउ उदओं चउ पंचम तिरि मंणुस्स चोद्दसमं / आसम्मदेसजोगी उवसंता संतयाऊणं // 845 // अब्बंधे इगिसंतं दो दो बद्धाउ बज्झमाणाणं। . चउसु वि एक्कस्सुदओ पणनवनव पंच इइ भेया // 846 // नव छच्चउहा बज्झइ दुगट्ठदसमेण दंसणावरणं / नव बायरम्मि संतं छक्कं चउरो य खीणम्मि // 847 // 214