________________ // 778 // अंतमुहुत्तियखंडं तत्तो उकिरइ उदयसमयाओ। निक्खिवइ असंखगुणं जा गुणसेढी परं हीणं // 777 // उक्किरइ असंखगुणं जाव दुचरिमं ति अंतिमे खंडे / संखेज्जंसो खंडइ गुणसेढीए तहा देइ कयकरणों तकाले कालं पि करेइ चउसु वि गईसु / वेइअसेसो सेढी अण्णयरं वा समारुहइ // 779 // तइयचउत्थे तम्मि व भवम्मि सिझंति दसणे खीणे / जं.देवनिरयसंखाउ चरमदेहेसु ते हुति // 780 // अहवा दंसणमोहं पढमं उवसामइत्तु सामण्णे / ठिच्चा अणुदइयाणं पढमठितीआवली नियमा // 781 // पढमुवसमंव सेसं अंतमुहुत्ताओ तस्स विज्झाओ। संकेसविसोहीओ पमत्त इयरत्तणं बहुसो // 782 // पुण तिण्णि उ करणाई करेइ तइयम्मि एत्थ पुण भेओ। अंतो कोडाकोडी बंधं संतं च सत्तण्हं . // 783 // ठितिखंडं उक्कोसं पि तस्स पल्लस्स संखतमभागं / ठितिखंड बहुसहस्से सेक्ककं जं भणिस्सामो करणस्स संखभागे सेसे (य) असण्णिमाइयाण समो। बन्धो कमेण पल्लं वीसगतीसाण उ दिवढं . // 785 // मोहस्स दोण्णि पल्ला संते वि हु एवमेव अप्पबंहू / पलियमित्तम्मि बन्धे अण्णो संखेज्जगुणहीणो // 786 // एवं तीसाण पुणो पल्लं मोहस्स होइ उ दिवटुं / एवं मोहे पल्लं सेसाणं पलसंखंसो // 787 // वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं / पल्लअसंखेज्जंसो नामगोयाण तो बन्धा // 788 // // 784 // 200