________________ // 770 // परिणामपच्चएणं गमागमं कुणइ करणरहिओ वि। आभोगनट्ठचरणो करणे काऊण पावेइ . // 765 // परिणामपच्चएणं चउव्विहं हाइ वड्डई वा वि।। परिणामवड्डयाए गुणसेढिं तत्तियं रयइ // 766 // सम्मुप्पायणविहिणा चउगइआ सम्मदिट्ठी पज्जत्ता / संजोयणा विजोयंति न उण पढमठित करेंति // 767 // उवरिमगे करणदुगे दलियं गुणसंकमेण तेसिं तु / नासेइ तओ पच्छा अंतमुहुत्ता सभावत्थो / // 768 // दंसणखवगस्सऽरिहो जिणकालीओ पुमट्ठवासुवरि / अणणासकमा करणाई करिअ गुणसंकमं तह य // 769 // अप्पुव्वकरणसमगं गुणउव्वलणं करेइ दोहं पि। तक्करणाई जं तं ठितिसंतं संखभागान्ते / एवं ठितिबंधो वि हु पविसइ अणियट्टिकरणसमयम्मि / अपुव्वं गुणसेढिं ठितिरसकंडाणि बन्धं च // 771 // देसुवसमणनिकायण निहत्तिरहियं च होइ दिट्ठितिगं / कमसो असण्णिचउरिदियाइ तुल्लं च ठिइसंतं // 772 // ठितिखंडसहस्साई एक्कक्के अंतरम्मि गच्छंति / पलिओवमसंखंसे दंसणसंते तओ जाए। // 773 // संखेज्जा संखेज्जा भागा खंडेइ सहससो ते वि। तो मिच्छस्स असंखा संखेज्जा सम्ममीसाणं तत्तो बहुखंडते खंडइ उदयावलीरहिअमिच्छं / तत्तो असंखभागा सम्मामीसाण खंडेइ . // 775 // बहुखंडते मीसं उदयावलि बाहिरं खिवइ सम्मे। . अडवाससंतकम्मो दंसणमोहस्स सो खवगो . // 776 // // 774 // 208