________________ गंतुं संखिज्जंसं अहापवत्तस्स हीण जा सोही / तीए पढमे समए अणंतगुणिआ उ उक्कोसा .. // 741 / एवं एकंतरिया हेढुवरिं जाव हीण पज्जते / तत्तो उक्कोसाओ उवरुवरि होइ णंतगुणा .. // 742 // जा उक्कोसा पढमे तीसे णंता जहनिया बीए। . करणे तीए जेट्ठा एवं जा सव्वकरणं पि. // 743 // अपुव्वकरणसमगं कुणइ अपुव्वे इमे उ चत्तारि / ठितिघायं रसघायं गुणसेढी बंधगद्धा, य / / 744 // उक्कोसेणं बहुसागराणि इयरेण पल्लसंखंसं / ठितिअग्गाओ घायइ अंतमुहुत्तेण ठितिखंडं // 745 // असुभाणंतमुहुत्तेण हणइ रसखंडगं अणंतसं / करणे ठितिखंडाणं तम्मि उ रसकंडगसहस्सा // 746 // घाइयठिइओ दलियं घेत्तुं घेत्तुं असंखगुणणाए / साहिय दुकरणकालं उदयाओ रयइ गुणसेढिं करणाइए अपुव्वो जो बन्धो सो न होइ जा अण्णो / बंधगअद्धा सा तुल्लिगा उ ठिइकंडगद्धाए // 748 // जा करणाईएँ ठिई करणंत तीए होइ संखंसो। - अनियट्टीकरणमओ मुत्तावलिसंठियं कुणइ // 749 // एवमणियट्टिकरणे ठितिघायाईणि हुंति चउरो वि / संखेज्जंसे सेसे पढमठिई अंतरं च भवे // 750 // अंतमुहुत्तियमेत्ताई दो वि निम्मवइ बन्धगद्धाए। गुणसेढीसंखभागं अंतरकरणेण उक्किरइ . // 751 / / अंतरकरणस्स विही घेत्तुं घेत्तुं ठिईउ मज्झाओ। . दलियं पढमठिईए विछुब्भइ तहा उवरिमाए . // 752 / / // 747 // 206