________________ सइ फासुयम्मि दाणे, दाणफलं तह य बुज्झई विउलं / बंभच्चेराइजुयं, पत्तं पि य विज्जए तत्थ . // 160 // दाउं नवरि न सक्कइ. दाणविघायस्स कम्मणो उदए / दाणंतरायमेयं, लाभे वि य भण्णए विग्धं // 161 // जइ वि पैसिद्धो दाया, जायणनिउणो वि जायगो जइ वि / न लहइ जस्सुदएणं, एयं पुण लाभविग्धं तु // 162 // मणुयत्ते वि हु पत्ते, लद्धे वि हु भोगसाहणे विभवे / भुत्तुं नवरि न सक्कइ, विरइविहूणो वि जस्सुदए // 163 // भोगस्स विग्घमेयं, उवभोगे आवि विग्घमेवेव / भोगुवभोगाणेसि, नवरि विसेसो इमो होइ // 164 // सइ भुज्जइ त्ति भोगो, सो पुण आहारपुष्फमाईओ। उवभोगो य पुणो पुण, उवभुज्जइ भवणविलयाई // 165 // बलवं रोगविउत्तो, वय संपण्णो वि जस्स उदएणं / विरिएण होइ हीणो, वीरियविग्धं, तु पंचमयं // 166 // एवं पंच वियप्पं, अट्ठमयं अंतराइयं होइ। .. भणिओ कम्मविवागो, समासओ गग्गरिसिणा उ // 167 // एयं गाहाण सयं, अहियं छावट्ठिए उ पढिऊणं / जो गुरु(5)पुच्छइ नाही, कम्मविवागं च सो अइरा // 168 // / 125