________________ // 48 // // 49 // . // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // सुलब्धानन्दसाम्राज्यः केवलज्ञानभास्करः। परमात्मस्वरूपोऽहं जातस्त्यक्तभवार्णवः अहं निरञ्जनो देवः सर्वलोकाग्रमाश्रितः / इति ध्यानं सदा ध्यायेदक्षयस्थानकारणम् आत्मनो ध्यानलीनस्य दृष्टे देवे निरञ्जने / आनन्दाश्रुप्रपातः स्याद्रोमाञ्चश्चेति लक्षणम् स यमो नियमश्चैव करणं च तृतीयकम् / प्राणायामप्रत्याहारौ समाधिर्धारणा तथा . ध्यानं चेतीह योगस्य ज्ञेयमष्टाङ्गकं बुधैः। - पूर्णाङ्गं क्रियमाणस्तु मुक्तये स्यादसौ सताम् तद्धर्म तव्रतं ध्यानं तत्तपो .योग एव सः। स एव हि पदारोहो न यत्र क्लिश्यते मनः संकल्पेन विकल्पेन हीने हेतुविवर्जिते। धारणाध्येयनियुक्त निर्मलस्थानके ध्रुवे . नियुञ्जीत सदा चित्तं सभावं भावनां कुरु / पदे तत्र गतो योगी न पुनर्जन्मतां व्रजेत् ज्ञेयं सर्वं पदातीतं ज्ञानं च मन उच्यते। ज्ञानं ज्ञेयं समं कुर्यान्नान्यो मोक्षपथः पुनः भ्रवोपरि मनो नीत्वा तत्परं चावलोक्यते / परात्परतरं तच्च तत्सूक्ष्मं तन्निरञ्जनम् पूर्वमार्गे न मोक्षोऽस्ति पश्चिमेऽपि न विद्यते। उन्मार्ग उन्मनीभावे मुक्तिः स्यान्मार्गवर्जिता भवभ्रान्तिपरित्यागादानन्दैकरसात्मिका। सहजावस्थितिः साधोरयं मोक्षपथः स्मृतः 356 // 54 // . // 55 // // 57 // // 58 // // 59 //