________________ // 76 // विश्वासप्रतिपन्नानां, वञ्चने का विदग्धता? / अङ्कमारुह्य सुप्तानां, हतं किं नाम पौरुषम् सुलहो विमाणवासो एगच्छत्ता य मेइणी सुलहा / दुलहा पुण जीवाणं जिणिंदवरसासणे बोही जो पापभीरुचितोअभयं जीवाण देइ करुणाए / कत्तोवि तस्स न भयं होइ जहा अभयसीहस्स // 77 // // 78 // // 1 // // 2 // पू.आ.श्रीजिनेश्वरसूरिविरचितः ॥कथानककोशः // नमिऊण तित्थनाहं तेलुक्कपियामहं महावीरं। वुच्छामि सुक्खकारणभूयाई कह वि नायाई जिणपूयाए तहाविहभावेण विणा वि पावए जीवो / सुरनरसिवसोक्खाइं सूयगमिहुणं इहं नायं . पूयंति जे जिणिदं विसुद्धभावेण सारदव्वेहिं / नरसुरसिवसुक्खाइं लहंति ते नायदत्तु व्व पूयापणिहाणेण वि जीवों सुरसंपयं समज्जिणइ / जिणदत्त 1 सूरसेणा 2 सिरिमाली 3 रोरनारिव्व 4 जे वंदंति जिणिदं वंदणविहिणा उ सम्ममुवउत्ता / सुरसंघवंदणिज्जा हवंति ते विण्हुदत्तु व्व गावंति जे जिणाणं गुणनियरं भावसुद्धिसंजणयं / ते गिज्जति सुरेहिं सीहकुमारु व्व सुरलोए वेयावच्चं धन्ना करिति साहूण जे उ उवउत्ता। भरहु व्व नरामरसिवसुहाण ते भायणं हुंति // 3 // // 4 // // 6 // // 7 // 386