________________ इयरो भिंदइ निययं मयजंबूयाणमट्ठिसंघायं। दीवस्स य धूमस्स य एगुप्पत्ते वि जह पइच्छो // 51 // एगो रयइ-पयासं अण्णो लोयाण दिट्ठिमुद्धेइ / तह पिच्छह नरचंदा ! सुयदुस्सुयनाणववहाणं // 52 // रण्णा भणियं को ? पुण समप्पियं मंतिणा तओ पत्तं / तं वाईऊण रण्णा पयंपियं होऊ तेणावि / // 5.3 // अच्चंतपाढिएहिं वि इमेहिं पावेहिं जं समायरियं / सो वि हु तमावरिस्सइ धीद्धी ! एवंविहसुएहिं // 54 // जइ पुण तुह निब्बंधो विण्णाणमणुब्भुओ तहा सो वि। तो मंतिणोवणिओ सुरिंददत्तो सउवज्झाओ // 55 // अह तं भूमिवइणा विचित्तपहरणपरिस्समं किणंगं / उच्छंगे विणिवेसिय पयंपियं जायतोसेण' // 56 // पूरेसु तुमं मम वच्छ ! वंछियं विहिऊण राहं च। परिणेसु णिव्वुइराय-कण्णयं अज्जसु सुरज्जं // 57 // ताहे सुरिंददत्तो नरनाहं नियगुरुं च नमिऊण। . आलीढट्ठाणट्ठिओ धीरो धणुदंडमादाय / // 58 // निम्मलतेल्लाऊरिय-कुंडयसंकंतचक्कगणछिदं / पेहितो अवरेहिं हीलिज्जतो वि कुमरेहि // 59 // अग्गियपव्वयप्पमुहेहिं रोडिज्जंतो वि तेहिं चेडेहिं / गुरुणा निरूविएहिं पासट्ठिएहिं च पुरिसेहि // 60 // आकड्डियखग्गेहिं जइ चुक्कसि तावयं हणिस्सामो / इइ जंपिरेहिं तेहिं तज्जिज्जतो वि पुणरुत्तं -- // 61 // लहुहत्थो उड्डमुहो एगग्गमणो महामुणिंदो व्व। . .. उवलद्धचक्कविवरो राहं विधइ सरेण लहुं // 62 // 330