________________ // 6 // // 7 // // 8 // पारद्धं रयणाणं गवेसणं तेण पउणदेहेण। ... जह तस्स रयणनिवहो दुलहो तह इत्थ मणुअत्तं जह सेट्ठी तह भव्वो सुगुरुसुधम्माइतत्तसंजुत्तो। दंसणगुणवररयणेहिं पुरिअअस्थिक्कबोहित्थो संजमरयणद्दीवं पत्तो पुण तत्थो गुरुजिणाणुकूलाओ। आगमणयवररयणाण सोहणं भायणं जाओ विगहोस्सुत्तमहानिल-उब्भडकल्लोलभीसणवसाओ / अत्थिक्कजाणवत्तं भग्गम्मि गया रयणरासी रुद्दे य भवसमुद्दे णिच्चं परिभम्मुवागओ णिगोयगिहे / तस्स सुइरयणगणो दुलहो तह जाण मणुअत्तं इय पंचमदिटुंतो रयणगणामा मए विणिट्ठिो। नरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // // 2 // ॥आवश्यकचूर्णौ रत्नदृष्टान्तोऽन्यथापि दृश्यते, तथाहिआसी सुकोसलणयरे पवरगुणपउणजणसमाइण्णो / इब्भो अच्चब्भुयभूइ-भायणं धण्णदत्तो त्ति तस्स पिआ पणइणी धणसिरि त्ति जाया सुया पंच / बहुरयणरासिसारो घरसारो अगणिओ तह य / जायम्मि वसंतमहे तम्मि पुरे जस्स जत्तिआ अत्थि। धणकोडीओ पडाया तावइया सा समुस्सेइ . सो पुण इब्भो कोडीहिं रयणमोल्लं करेउमसमत्थो। तेसिमणग्घत्तणओ उज्झइ णो तो पडायाओ 314 // 3 // // 4 //