________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // // 5 // पू.आ.श्रीविजयसेनसूरिविरचिता // सूक्तरत्नावली॥ विबुधानन्दजननी, गुरोर्वाचमुपास्महे / या रसेव रसै रम्या, मङ्गलोत्सवकारिणी वचोभिर्नीतिनिष्यन्द,-कन्दकादम्बिनीनिभैः / दो व्याख्याजुषां शिक्षा, मुखाम्भोजरवित्विषम् भावसारस्ययुक्तानि, सूक्तानि प्रतिकुर्महे / रविपादैरिवाम्भोजं, यैः सभोल्लासभाग् भवेत् विनेन्दुनेव रजनी, वाणी श्रवणहारिणी / दृष्टान्तेन विना स्वान्ते, विस्मयं वितनोति न दृश्यते सदसद्वस्तु, यैर्भास्करकरैरिव / दृष्टान्तास्तुष्टये सन्तु, काव्यालङ्कारकारिणः / अतश्चित्तचमत्कार,-मकराकरचन्द्रिकाम् / भावयुक्तेषु सूक्तेषु, ब्रूमो दृष्टान्तपद्धतिम् भवेत्तुङ्गात्मनां संपद्, विपद्यपि पटीयसी। पत्रपाते पलाशानां, किं न स्यात् कुसुमोद्गमः ? गुणदोषकृते स्थाना,-स्थाने तेजस्विता स्थिता / दर्पणे मुखवीक्षायै, खड्गे प्राणप्रणाशकृत् पदे पदेऽधिगम्यन्ते, पापभाजो न चेतरे। . भूयांसो वायसाः सन्ति, स्तोका यच्चाषपक्षिणः अपि तेजस्विनं दौःस्थ्ये, त्यजन्ति निजका अपि / न भानुर्भानुभिर्मुक्त:, किमस्तसमये सखे ! ज्योतिष्मानपि सच्छिद्रैः, सङ्गतोऽनर्थहेतवे / मञ्चकान्तरिता दीप,-प्रभा पुण्यप्रणाशिनी // 7 // // 8 // // 9 // // 10 //