________________ // 32 // // 33 // // 34 // . सर्वोऽपि हि तथा चक्रे ववर्षोक्तेऽह्नि चाम्बुदः / कियत्यपि गते काले संगृहीताम्बु निष्ठितम् / अक्षीणसंग्रहाम्भस्को राजामात्यौ तु तौ विना / नवाम्बु लोकाः सामन्तप्रमुखाश्च पपुस्ततः तत्पानाद् ग्रहिलाः सर्वे ननृतुर्जहसुर्जगुः / स्वैरं चिचेष्टिरेऽन्यत्र विना तौ राजमन्त्रिणौ राजामात्यौ विसदृशौ सामन्ताद्या निरीक्ष्यते / मन्त्रयाञ्चक्रिरे नूनं ग्रहिलौ राजमन्त्रिणौ अस्मद्विलक्षणाचाराविमकावपसार्य तत् / अपरौ स्थापयिष्यामः स्वोचितौ राजमन्त्रिणौ मन्त्री ज्ञात्वेति तन्मन्त्रं नृपायाख्यन्नृपोऽवदत् / आत्मरक्षा कथं कार्या तेभ्यो वृन्दं हि राजवत् // 35 // // 37 // 335