________________ // 19 // . // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // . // 24 // स्वयं भयपरीणामः परेषामथ भापनम् / त्रासनं निर्दयत्वं च भयं प्रत्याश्रवा अमी परशोकाविष्करणं स्वशोकोत्पाद-शोचने / रोदनादिप्रसक्तिश्च शोकस्यैते स्युराश्रवाः चतुर्वर्णस्य सङ्घस्य परिवाद-जुगुप्सने / सदाचारजुगुप्सा च जुगुप्सायाः स्युराश्रवाः ईर्ष्या-विषयगाद्धर्ये च मृषावादोऽतिवक्रता / परदाररतासक्तिः स्त्रीवेदस्याऽऽश्रवा इमे स्वंदारमात्रसन्तोषोऽना मन्दकषायता / अवक्राचारशीलत्वं पुंवेदस्याऽऽश्रवा इति स्त्री-पुंसानङ्गसेवोग्राः कषायास्तीवकामता / पाखण्डस्त्रीव्रतभ्रंशः षण्ढवेदाश्रवा अमी साधूनां गर्हणा धर्मोन्मुखानां विघ्नकारिता / मधु-मांसाविरतानामविरत्यभिवर्णनम् विरताविरतानां चान्तरायकरणं मुहुः। . अचारित्रगुणाख्यानं तथा चारित्रदूषणम् कषाय-नोकषायाणामन्यस्थानामुदीरणम् / चारित्रमोहनीयस्य सामान्येनाऽऽश्रवा अमी पञ्चेन्द्रियप्राणिवधो बरारम्भ-परिग्रहौं / निरनुग्रहता मांसभोजनं स्थिरवैरता रौद्रध्यानं मिथ्यात्वा-ऽनन्तानुबन्धिकषायते / कृष्ण-नील-कपोताश्च लेश्या अनृतभाषणम् परद्रव्यापहरणं मुहमैथुनसेवनम् / अवशेन्द्रियता चेति नरकायुष आश्रवाः // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // // 30 //