________________ // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 // . // 27 // यज्जलं सकलाब्धीनां, नदीनां याश्च वालुकाः / ततोऽनन्तगुणोऽर्थः स्यादेकसूत्रगतोऽपि हि इत्यर्थालोचनं मिथ्याभावसङ्कोचनं कृतम् / सूत्रार्थोभयसत्यत्वं, कुरुते चैत्यवन्दने केवलज्ञानसदृष्टिशालिनां कीर्तिमालिनाम् / / अष्टप्रतिहार्यपूजामर्हतां श्रीमदर्हताम् रत्नस्वर्णसुदुर्वर्णक्लृप्तशालत्रयान्तरे / देशनां कुर्वतां सर्वातिशयाभीशुभास्वताम् सीमन्तिनीशस्त्रजापमालावर्जितवर्मणाम्.। मुक्तिसौख्यकृदक्षोदात्, प्रमोदाद् गुणरागिता क मातङ्गगृहे तुङ्गकुम्भैरावणवारणः ? | क्षुद्रस्य व दरिद्रस्य, गृहे माणिक्यवर्षणम् ? अन्धातमसपूर्णायां, दुष्पापोद्योतसम्पदि / क्व तिमिस्रगुहायां भो, रत्नदीप: शुभप्रभः ? मरुस्थल्यामकल्याणकण्टकिद्रुघटभृति। . क्व कल्पद्रुर्लसच्छाखाप्रसूनफलसंकुलः ? क्व वयं पापसंलग्ना, मग्नाः संसारसागरे। निस्त्राणाः पञ्चबाणारिबाणगोचरतां गताः ? क्व पश्यामः स्तुवत्कामकल्पद्रूस्त्रिजगत्प्रभून् / सहस्राक्षैरपि द्रष्टुं, दुर्लभान् विश्ववल्लभान् ? इत्थमानन्दसन्दोहरोहद्रोमांचधारिता / आनन्दाश्रुसमुल्लासो, विस्मयस्मेरचित्तता नानादुःखौघवा:पूर्णाद्विट्चरातुच्छकच्छपात् / ' आधिव्याधिप्रबन्धोद्यत्कल्लोलकुलसंकुलात् 164 // 28 // // 29 // // 30 // // 31 // . // 32 // // 33 //