________________ // 365 // // 366 // // 367 // // 368 // // 369 // // 370 // निद्रापगमे गुरवस्तत्त्वं ध्यायन्ति चिन्तयन्त्यथवा / अभ्युद्धतं विहारं तृतीययामे जनोद्धारम् सूरिस्थविरग्लानप्रमुखा निजसमय एव कृतनिद्राः / भावेनाप्यपनिद्रा विचिन्तयन्तीदृशं हृदये "धन्नाणं विहियोगो विहिपक्खाराहगा सया धन्ना / विहिबहुमाणी धना विहिपक्खअदूसगा धन्ना" तिष्ठन्ति पञ्च पुरुषा यत्र ज्ञानादिवित्तसेवधयः / बद्गच्छनिश्चयोऽहं कदा विधास्यामि विधिपक्षम् पृथ्वीपतिः कुमारो मन्त्री सेनापतिः पुरारक्षः / पञ्चभिरेतै राज्यं यथा प्रधानैर्भवति मुदितम् तद्वत्प्रवराचार्योपाध्यायप्रवर्तिनस्तथा स्थविरः / यत्र गणावच्छेदी पञ्चैते सन्ति स हि गच्छः विश्राम्यन्ति गणधराश्चतुर्थयामे तु जागृयुः सर्वे / / वैरात्रिककालाऽऽदानपूर्वकं कुर्वतेऽध्यायम् . ग्राहयोऽर्द्धरात्रिकस्याऽऽसनः प्राभातिकस्य चासन्नः / मुनिना कालो वैरात्रिक इति सिद्धान्तपरिभाषा साधुश्चैत्रे शुक्लत्रयोदशी-प्रभृतिके दिनत्रितये / कायोत्सर्ग कुर्यादचित्तरजसोऽधनमनार्थम् . स्वाभाविके पतत्यपि रजसि सवाते समीररहितेऽपि / सूत्रं प्रमादरहितो यावद्वत्सरमधीयीत / शुचीकार्तिकयोर्मासे सितभूतेष्टाप्रभृत्यहस्त्रितयम् / प्रतिपदवसानमध्ये-तव्यं न यतोऽत्र जीववधः एवं प्रतिपत्पर्यन्तमाश्विने चैत्रिके च नाऽध्येयम् / द्वादशदिनानि यावत् सूत्रं सितपञ्चमीप्रभृति 150 // 371 // // 372 // // 373 // // 374 // // 375 // // 376 //