________________ / .. // 349 // // 350 // // 351 // // 352 // // 353 // // 54 // निःशेष विश्वमेकत्र, धृतमन्यत्र जीवितम्। . विश्वं विश्वं परित्यज्य, जीवो गृह्णाति जीवितम् एतद्धर्मस्य सर्वस्वं, शेषो वचनविस्तरः / परेषां तन्न कर्तव्यं, यदात्मनि न रोचते सर्वदानाग्रिमं दानं, शौचानां शौचमुत्तमम् / कारणं सर्वसौख्यानां, यदेतत्प्राणिरक्षणम् शेषदानान्यदानानि, मरणे समुपस्थिते। जीवितं यो ददात्यस्य, स दाता सर्वदायकः दृष्टान्तोऽत्र नरः कोऽपि, राजरत्नमलिम्लुचः। राजप्रसादतो राज्या मरणाद्विनिमोचितः परप्राणप्रहाणोत्थ - पापपूरेण पूरिताः। .. पतन्ति प्राणिनः पापा, नरके तीव्रवेदने' सदयहृदयदत्ता त्रातनिःशेषसत्त्वा, विधृतगुणविताना सर्वधर्मप्रधाना। . यति दलितदोषा सर्वकल्याणपोषा, जनजनितसदक्षा पालिता जीवरक्षा कर्मद्रुमकुठाराय, सर्वकल्याणकारिणे / जगन्मङ्गलभूताय, सत्पात्राय महात्मने ज्ञानदर्शनचारित्र - सम्पदां कुलसद्मने / संसारसारभूताय, सर्वदा सुखहेतवे श्रीमत्सङ्घसमुद्राय, गुणरत्नभृतात्मने / पूजां पुण्यजनः कोऽपि, कुरुते भक्तिनिर्भरः शिवसद्मसमारोह - निःश्रेणिः सरला समा। गुणगात्रैः समाकीर्णा, सङ्घभक्तिर्गरीयसी // 355 // // 356 // // 357 // // 358 // // 359 // 14