________________ कयपंचंगपणामो, दाहिणजाणुं महीएँ विणिहटु / इयरं मणा अलग्गं, ठविऊण कयंजलीमउलो // 268 // जिणबिंबपायपंक्यविणिवेसियनयणमाणसो धणियं / अक्खलियाइगुणजुयं, पणिवायथयं (तओ) पढइ // 269 // एयस्स उ वक्खाणं, संहियमाई कमेण छब्भेयं / पुव्वपुरिसेहिँ दिटुं, उवइटुं तह य एवं तु // 270 // संहिया य पयं चेव, पयत्थो पयविग्गहो / चालणं पज्जवत्थाणं, वक्खाणं छव्विहं मयं // 271 // अक्खलियसुत्तुच्चारणरूवा इह संहिया मुणेयव्वा / सा सिद्धि च्चिय नेया, विसुद्धसुत्तस्स पढणेण // 272 // तह संपयनामाई, महापयाइं हवंति नव एत्थ / अत्थपयणा उ जम्हा, होइ पयं समयभासाए // 273 // आलावयरूवाइं तेत्तीसं वन्नियाई सूरीहिं / ताई पुण एवं खलु, संमयनवगे विहत्ताई // 274 // दो तिय चउरो पंच य, पंच य पंच य दुगं चुउक्कं च / तिनेव य आलावा, संपयनवगे अणुक्कमसो // 275 // एएसिं अत्थो पुण, नमो त्ति नमणं इमो मम पणामो / अत्थु त्ति होउ संपज्जउ त्ति णं वक्कलंकारे // 276 // होउ पणामो एसो, अरहंताणं ति एस संबंधो। अट्ठविहपाडिहरं, अरहंती तेम अरहंता // 277 // असोगरुक्खो सुरपुप्फवुट्ठी, दिव्वो ज्झुणी चामरमासणं च / / भामंडलं दुंदुहि याऽऽयवत्तं, सुपाडिहेराणि जिणाणमेव 278 // अरहंति वंदणनमंसणाणि अरहंति पूयसक्कारं / ' सिद्धिगमणं च अरिहा, अरहंता तेण वुच्चंति // 279 // ... . . 75