________________ अन्नत्थाऽभणियं पि हु, आयरणाओ मए इमं भणियं / जडभावदूसियाणं, भव्वाणमणुग्गहट्ठाए // 256 // सूरिपरंपरपत्तो, अत्थो सत्थे न गंथिओ जाव / .. ता घेत्तुं दाउं वा, न तीरए मंदबुद्धीहिं // 257 // सुहगहण-धारणत्थं, तेसिं एवं समासओ रइयं / फुडवियडपायडत्थं, भणामि सुत्तत्थमेत्ताहे // 258 // . सो पुण पुव्वकईहिं, भणिओ च्चिय ललियवित्थराईसु / किंतु महामइगम्मो, दुरवगम्मो पागयजणस्स // 259 // दुक्कररोया विउसा, बाला- भणियं पि नेव बुझंति / .... तो मज्झिमबुद्धीणं, हियत्थमेसो पयासो मे // 260 // जं सम्मवंदणाए, जायइ जीवस्सं सुंदरो भावो / . . तत्तो पुण कम्मखओ, तओ वि सव्वं 'सुकल्लाणं // 261 // सम्मजिणवंदणं पुण, विहाण-अत्थावबोहओ होइ। तत्थ विहाणं भणियं, सुत्तपयत्थं अओ वोच्छं // 262 // इह साहू सड्ढो वा, चेइयगेहाइउचियदेसम्मि / जहजोगं कयपूओ, पमोयरोमंचियसरीरो // 263 // धन्नोहं कयपुन्नो, अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि। जेण मए संपत्तं, जिणवंदणसुत्तबोहित्थं // 264 // एयं परमं तत्तं, कायव्वमिओ वि नाऽवरं भुवणे / विज्जं पिव मंतं पिव, विहिणाडडराहेमि ता एवं // 265 // एवं संवेगरसायणेण सुत्थीभवंतसव्वंगो / अइयारभीरुयाए, पडिलेह-पमज्जणुज्जुत्तो // 266 // उद्दामसरं वेयालिओ व्व पढिऊण सुकइबद्धाइं। .. सपराणंदकराई, मंगलचित्ताइं वित्ताई // 267 //