________________ केवलिणो उवओगो, वच्चइ जुगवं समत्थनेएसु / छउमत्थस्स व एवं, अभिन्नविसयासु किरियासु // 244 // भिन्नविसयं निसिद्धं, किरियाद्गमेगया न एगम्मि / जोगतिगस्स वि भंगियसुत्ते किरिया जओ भणिया // 245 // एएण थोत्तपढणं, कुणंति नो जे पयाहिणं देता। तेसि पि कुमइसल्लं, उद्धरियं चेव दट्ठव्वं // 246 // तिविहं पणिहाणं पुण, मण-वइ-कायाण जं समाहाणं / राग-दोसाभावो, भावत्थो होइ एयस्स // 247 // चितइ न.अन्नकज्जं, दूरं परिहरइ अट्ट-रोद्दाई / एगग्गमणो वंदइ, मणपणिहाणं हवइ एयं // 248 // विगहा-विवायरहितो, वज्जिंतो मूय-ढड्डरं सदं / वंदइ सपयच्छेयं, वायापणिहाणमेतं तु // 249 // पेहंत-पमज्जंतो, करेइ उट्ठण-निसीयणाईयं / वावारंतररहिओ, वंदइ इय कायपणिहाणं // 250 // एवं पुण तिविहं पि हु, वंदंतेणाइओ उ कायव्वं / जम्हा दह-तियसारा, सुवंदणा होइ एवं तु // 251 // इय दह-तियपरिसुद्धं, वंदणयं जो जिणाण तिक्कालं / कुणइ नरो उवउत्तो, सो पावइ सासयं ठाणं // 252 // अन्नं पि तिप्पयारं, वंदणपेरंतभावि पणिहाणं / जम्मि कए संपुन्ना, उक्कोसा वंदणा होइ // 253 // चेइयगय साहुगयं, नायव्वं तह य पत्थणारूवं / एयस्स पुण सरूवं, सविसेसं उवरि वोच्छामि // 254 // वंदणविहाणमेयं, संखेवेणं मए समक्खायं / अभणियपुव्वं सेसं, अवसरपत्तं भणिस्सामि // 255 // . 73