________________ उत्तमगुणसंपन्ना अरिहा, जोग्ग त्ति तेसि ते अंता / भुवणे वि जेण नन्नो, तेहिंतो उत्तमो अत्थि . // 280 // न रहंति न चिटुंती, भवम्मि जं तेण वा वि अरहंता / ... अहव रहो पच्छनं, अंतो वा नत्थि नाणस्स // 281 // अहवा अरिणो सत्तू, हतारो तेसि तेण अरिहंता / अट्ठविहकम्मपमुहा, ते नेया जेणिमं सुत्तं // 282 // अट्ठविहं पि य कम्मं, अरिभूयं होइ सव्वजीवाणं / तं कम्ममरि हंता, अरिहंता तेण वुच्चंति. // 283 // राग-द्दोस कसाए, इंदियाणि वि पंच वि / एए अरिणो हंता, अरिहंता तेण वुच्चंति // 284 // संसारवल्लरे जं, पुणो न रोहंति खीणकम्मत्ता / अरुहंता णं तेसिं, होउ नमो वा वि जंभणियं // 285 // दडम्मि जहा बीए, न होइ पुण अंकुरस्स उप्पत्ती / तह कम्मबीयविरहे, भवंकुरस्सावि नो भावो . // 286 // नामाइचउब्भेया, अरहंता जिणमयम्मि सुपसिद्धा। भावपडिवत्तिहेडं, भगवंताणं ति तो भणियं // 287 // तत्थ भगो छब्भेओ, ईसरियाईण जं समग्गत्तं / / ईसरियं रूव-जसो-सिरि-धम्म-पयत्तमेएसि // 288 // ईसरियं पि पहुत्तं, ससुरासुरमणुयजीवलोगस्स / एएसि संपुन्नं, रूवं पि जमाऽऽगमे भणियं // 289 // सव्वसुरा जइ रूवं, अंगुट्ठपमाणयं विउव्वेज्जा / जिणपायंगुटुं पइ, न सोहए तं जहिंगालो // 290 // भरियभुवणंतरालो, गोखीर-तुसार-हार-ससिधवलों / तेलोक्के गिज्जंतो, जसो वि एएसि पडिपुनो / // 291 // 76