________________ जह कणरक्खणहेडं, रक्खिज्जइ जत्तओ पलालं पि। सासणमालिन्नभया, तहा कुसीलं पि गोवेज्जा // 136 // भणियस्स तत्तमेयं, संघस्सासायणा न कायव्वा / सोउं सगरसुआणं, दिव्विसहं दुक्खरिंछोलि // 137 // अन्नो भणेज्ज कोई, ओसरणठियस्स वीयरागस्स / इंदाइएहिँ न कया, मज्जण-मल्लाइणा पूआ . // 138 // जिणपडिछंदो पडिमा, संपइ तासि पि सा न खलु जुत्ता / रागाइसयपगासणमसंगयं वीयरागस्स . // 139 // . भणइ गुरू मुत्ताणं, रागो आरोविओ वि नारुहइ / न हि निद्दड्डे बीए, होइ पुणो अंकुरुप्पत्ती // 140 // पूआइदंसणाओ, रागित्तपकप्पणा न धन्नाणं / ' जायइ भावुल्लासो, कल्लाणपरंपरामूलं ' // 141 // जिणभवणबिंबपूआ, कीरति जिणाण नो कए किंतु / सुहभावणानिमित्तं, बुहाण इयराण बोहत्थं // 142 // चेईहरेण केई, पसंतरूवेण केई बिबेण / . पूआइसया अन्ने, बुझंति तहोवएसेण // 143 // ता पुप्फ-गंध-भूसण-विचित्तवत्थेहिँ पूयणं निच्वं / जह रेहइ तह सम्मं, कायव्वं सुद्धचित्तेहिं // 144 // अन्ने बेंति अजुत्तं, पुणरुत्तं वत्थ-भूसणाईणं / आरोवणं जिणाणं, उज्झियनिम्मल्लपायाणं // 145 // पडिवुत्तं चेव इमं, पुव्वं निम्मल्ललक्खणाभावा / भोगविणटुं दव्वं, निम्मल्लं वज्जरंतेण // 146 // अलमेत्थ वित्थरेणं, आइन्नं एवमाइ बहुभेअं / सव्वं न दूसिअव्वं, विसुद्धधम्मं महंतेण // 147 // 14